shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –६

गंजा सिर, चौड़ा माथा, लम्बा-सा मुँह, उभरी हुई बड़ी-बड़ी आँखें, गोरा रंग, लम्बा कद और उस पर खादी का लम्बा-सा कुरता-पाजामा । उत्तमचन्द को देखते ही हॉल में खामोशी छा गई और लोग अनायास अपने-अपने स्थान से उठ खड़े हुए।

शायद हँसी की आवाज़ मैनेजिंग-कमेटी के सदस्यों के कानों तक भी पहुँच गई थी। और उन्हें अनायास ही यह बोध हो गया था कि काफ़ी देर हो चुकी है, अब इंटरव्यू शुरू हो जाना चाहिए। इसीलिए उन्होंने मास्टर उत्तमचन्द को वहाँ भेजा था। मास्टर उत्तमचन्द ने सबसे बैठने का इशारा करते हुए वाणी में बेहद मिठास लेकर कहा, "आपकी बेचैनी बिलकुल नेचुरल है। मगर प्लीज़, आप थोड़ा-सा धैर्य और रखें, पाँच मिनट के अन्दर ही हम इंटरव्यू शुरू कर देंगे। बस सेक्रेटरी साहब की वेट कर रहे हैं। और मास्टर उत्तमचन्द ने मुस्कराते हुए सबकी ओर देखा। लोगों ने सोचा, वे कुछ और कहेंगे पर तभी वे आकस्मिक रूप से बाहर निकल गए।

पाठक ने कहा, "मुझे आशा थी कि भाषण थोड़ा लम्बा चलेगा। मगर बेहद शरीफ़ आदमी निकला।" राजेश्वर ठाकुर जो मास्टर उत्तमचन्द के आ जाने के कारण अपनी बात कहने का अवसर न पा सका था और जिसके भीतर अपनी हेठी की भावना अभी भी कुलबुला रही थी, तेजी से बोला, "आपकी सारी आशाएँ गलत ही निकलती हैं, पाठकजी।"

इतना कहकर राजेश्वर ने हल्का-सा पाज दिया। लोगों की प्रतिक्रिया देखी। कोई नहीं हंसा तो उसे विफलता का अहसास और जोरों से हुआ; बोला, "हाँ तो माथुर साहब, आप मेरे बारे में फरमा रहे थे कि मेरी 'क्वालिफिकेशन्स' सूट नहीं करती। आइए तो फिर दस-बीस रुपए की शर्त हो जाए इसी बात पर!

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